कालसर्प दोष पूजा के बाद प्रतिबंध कौन-कौन से होते है?

कालसर्प दोष पूजा के बाद के प्रतिबंध: क्यों जरूरी है ये नियम

कालसर्प दोष पूजा तभी फलदायी और प्रभावी होती है, जब उसके बाद नियम और प्रतिबंधों का पालन श्रद्धा और विश्वास से किया जाए। सात्त्विक जीवनशैली, नियमित पूजा और दान-पुण्य से यह पूजा आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है। कालसर्प पूजा के बाद के प्रतिबंधों का पालन करने से पूजा का प्रभाव बढ़ जाता है, और पूजा सफल एवं प्रभावशाली बन जाती है।

त्र्यंबकेश्वर में कालसर्प दोष पूजा एक शक्तिशाली वैदिक अनुष्ठान है जो राहु और केतु के दुष्प्रभावों को कम करता है। पूजा के बाद के प्रतिबंध और नियम, जैसे शाकाहारी भोजन, मंत्र जाप, और सात्विक जीवनशैली, इसके प्रभाव को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।

कालसर्प दोष पूजा के बाद प्रतिबंध क्यों जरूरी होते हैं?

कालसर्प दोष पूजा के बाद कुछ दिनों तक विशेष व्रत और नियम का पालन करना जरूरी है। पूजा के बाद कुछ नियमों और प्रतिबंधों का पालन करना आवश्यक है जिससे राहु और केतु के दुष्प्रभाव पूरी तरह समाप्त हों जाएँ और जीवन में सकारात्मक बदलाव आएँ।

  • यह पूजा एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलती है।
  • गलत खानपान या अनुचित व्यवहार से पूजा का प्रभाव कम हो सकता है।
  • व्रत और संयम से पूजा का दीर्घकालीन प्रभाव मिलता है।

1. कालसर्प दोष पूजा के बाद भोजन और खान-पान से जुड़े प्रतिबंध

  • मांसाहार वर्जित करें: पूजा के बाद कुछ दिन तक मांस, मछली, अंडा और अन्य तामसिक भोजन न खाएं।
  • शराब और नशे का सेवन न करें: नशीले पदार्थ का उपयोग पूजा की आध्यात्मिक शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
  • प्याज और लहसुन से परहेज करें: सात्त्विक भोजन जैसे फल, दूध, दही, चावल, रोटी, और सब्ज़ियाँ ही लें।

2. कालसर्प दोष पूजा के बाद जीवनशैली में अपनाने योग्य नियम

  • अच्छे विचार और संयमित आचरण: पूजा के बाद क्रोध, झूठ और गलत कार्यों से दूरी रखें।
  • सुबह स्नान और पूजा अनिवार्य: कम से कम 11 दिन तक सुबह स्नान कर भगवान शिव और नाग देवता की प्रार्थना करें।
  • दान और सेवा करें: ब्राह्मण, गरीब या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दें।

3. यात्रा और सामाजिक गतिविधियों में सावधानी

  • तुरंत लंबी यात्रा से बचें: कालसर्प पूजा के बाद विशेष रूप से पहले 3 दिनों में घर या धर्मशाला में ही विश्राम करें।
  • शादी-ब्याह या शोक कार्य में न जाएं: पूजा के बाद कम से कम 3 दिन तक ऐसे सामाजिक कार्यक्रमों से दूर रहें।
  • मंदिर दर्शन और सात्त्विक स्थानों पर रहें: सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए।

4. कालसर्प दोष पूजा के बाद किन बातों का रखें ध्यान?

  • संकल्प का पालन करें: पूजा के समय लिया गया व्रत या संकल्प अवश्य पूरा करें।
  • दैनिक पूजा जारी रखें: शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, महामृत्युंजय मंत्र या “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
  • व्रत तोड़ने से बचें: पूजा के बाद कम से कम 7-11 दिन तक नियमों का पालन करें।
  • पाप कर्मों से बचें: चोरी, छल-कपट, या किसी को हानि पहुँचाने वाले कार्य न करें।

कालसर्प दोष पूजा के बाद के प्रतिबंधों को पालन करने के क्या फायदे है?

  • पूजा का प्रभाव जल्दी और दीर्घकाल तक रहता है।
  • नकारात्मक ऊर्जा हटकर जीवन में सकारात्मकता आती है।
  • स्वास्थ्य, धन और पारिवारिक सुख में सुधार होता है।
  • राहु-केतु और नाग देवताओं की कृपा बनी रहती है।

त्र्यंबकेश्वर में कालसर्प दोष पूजा: पूजा विधि

Kaal Sarp Puja in Trimbakeshwar Nashik
Perfoming Puja in Trimbakeshwar

कालसर्प दोष पूजा त्र्यंबकेश्वर में 2-3 घंटे का एक वैदिक अनुष्ठान है, जो ताम्रपत्रधारी पंडितों द्वारा किया जाता है। प्रक्रिया में शामिल हैं:

  • पवित्र स्नान: गोदावरी नदी या कुशावर्त कुंड में स्नान।
  • संकल्प और गणेश पूजा: पूजा का उद्देश्य निर्धारित करना और गणेश पूजा।
  • रुद्र अभिषेक: भगवान शिव पर जल, दूध, और शहद चढ़ाना।
  • राहु-केतु जाप: “ॐ क्रौं नमोऽस्तु सर्पेभ्यो: काल सर्प शांति कुरु कुरु स्वाहा” मंत्र का जाप।
  • हवन और पिंड दान: अग्नि में आहुति और पितरों के लिए पिंड अर्पण।
  • चांदी का सर्प दान: चांदी या तांबे का सर्प पंडित को दान।
  • आरती और प्रसाद: भगवान शिव की आरती और प्रसाद वितरण।

कालसर्प दोष पूजा के बाद के लाभ कौन-कौन से है?

कालसर्प दोष पूजा और नियमों का पालन करने से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:

  • बाधाओं का निवारण: करियर, विवाह, और स्वास्थ्य में रुकावटें कम होती हैं।
  • आर्थिक समृद्धि: धन संचय और व्यापार में उन्नति।
  • मानसिक शांति: सर्प भय, बुरे सपने, और चिंता से मुक्ति।
  • पारिवारिक सौहार्द: रिश्तों में सुधार और संतान सुख।
  • आध्यात्मिक उन्नति: भगवान शिव और पितरों का आशीर्वाद।

कालसर्प दोष पूजा के बाद की सावधानियाँ और अतिरिक्त उपाय

  • नाग पंचमी व्रत: जुलाई-अगस्त में नाग पंचमी पर उपवास करें और 11 नारियल नदी में विसर्जित करें।
  • दान और सेवा: शनिवार को पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएँ, गरीबों को भोजन दान करें।
  • मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” या राहु-केतु मंत्र का नियमित जाप।
  • यंत्र स्थापना: कालसर्प यंत्र घर में स्थापित करें और नियमित पूजा करें।
  • शिव मंदिर दर्शन: हर सोमवार शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाएँ।

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